कलयुग के रावण
कलयुग के रावण
अब वो बचपन वाली गलियां नहीं
अब वो बचपन वाले खेल नहीं
अब वो बचपन वाले झूले नहीं
अब वो बचपन वाली धूम नहीं।
अब हर जगह डर के
बादल नज़र आते हैं
रावण के पुतले जलाकर
वाहवाही लूट रहे हो,
वहशियत की आड़ में कलियुग के
रावण खुलेआम घूम रहे हैं
मेलों में घुसकर आम लोगों में मिलकर
इंसानियत का ढोंग करते नज़र आ जाते हैं।
मुखौटे लगाएं इन सवालों में उलझे
दिलों में मचलते प्रश्नों का उत्तर दे दो
बुराई पे अच्छाइयों की जीत को
आईना दिखा दो।
इस बार रावण को राम नहीं
सीता से अग्नि दिलवाओ।
