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कल्पना रामानी

Abstract Action

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कल्पना रामानी

Abstract Action

कलम गहो हलधर

कलम गहो हलधर

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रच लो जीवन-गीत, कर्म की

कलम गहो हलधर !


सींचो क्यारी, भाव जगेंगे

बीज डाल दो, शब्द उगेंगे

जब आएगी फसल स्वर्ण सी 

सारे सुर, लय-ताल बनेंगे।


किलकेगी कविता,

कण-कण से  

पस्त न हो हलधर !


देख रहे हल राह तुम्हारी

बदरा बुला रहे जलधारी

घर-संसार सुखों की खातिर

तुम्हें जीतनी है यह पारी।


बहुरेंगे दिन, श्रम के भी !    

मत धीर तहो हलधर !

तुम सोए, जग सो जाएगा

जीव प्रलय में खो जाएगा


कर्म-कलम थामोगे जब तुम      

नव-इतिहास तुम्हें गाएगा

याद रहे, निर्भर तुम पर

भव-भूख, अहो, हलधर ! 


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