कलाम
कलाम
धनुषकोड़ी में जन्मा रामेश्वरम का उजियारा,
संघर्ष का मशाल थामे चलता फिरता गलियारा ।
एक परिंदा क्या उड़ा आसमॉं में,
सुन लिया जमीं से जैसे बादलों ने पुकारा ।।
गुरु शिक्षा तीव्र इच्छा आस्था और अपेक्षा,
थक हार कर देनी पड़ी थी अग्नि की परीक्षा ।
त्याग अर्पण समर्पण है सब,
सर्वस्व त्याग दिया कर्म था सुरक्षा ।।
रोहिणी अग्नि और मिसाइल पृथ्वी,
धर्मांधता से परे मानवता का तपस्वी ।
परमाणु परीक्षण पोखरण में करवाया,
धन्य धन्य था वह विद्या विशिष्ट वर्चस्वी ।
अनुशासन शाकाहार सादगी अपनाया,
कुरान गीता का संग पाठ कराया ।
प्रेरक प्रौद्योगिकी प्रत्यक्ष लाया,
भारत रत्न अंतिम श्वांस शिलांग में बिताया ।।
अग्नि पंख दे गया उस कलाम का इरादा,
बड़ा अनोखा था वो गरीबों का शहजादा ।
जब तक जला चराग़ रोशन करता रहा,
वह शमा क्या बुझा रो गया हंसता घरौंदा ।।
अब समय रहते खुद संभलना होगा,
धुन में तालियां होंगी या हाथ मलना होगा ।
और तुम बिन अंधियारा दूर चलना होगा,
सूरज का चमकने को सूरज सा जलना होगा ।।
लौट आओ परिंदे तुम्हारा पूरा इंतजाम है,
चीन-पाकिस्तान अपनों में मचा कोहराम है ।।
कोरोना के कारण कत्लेआम है,
आंखें तरस गई कहॉं मेरा कलाम है ।।