कल कल करती हूं
कल कल करती हूं
पावन हिमगिरी उत्तंग श्रृंग पर
कल- कल बहते तुझको देखा
जमती हर हिमखंड को
तुझ संग पिघलते देखा
कहती चल रही तू
हर पग पग किनारों से
निकल रही मैं बरफों को
पिघलाती चमकता जहांँ लाल सितारा
लगा उद्घोष जय मंदाकिनी
जर्रे-जर्रे के हिमालय ने पुकारा
उठ रही हर लहर
जो मेरे ह्रदय के तार तार में
पावन पवित्र करती जा रही
तू हर कोने आर-पार में
तरुण तारिणी मोक्षदायिनी
हरिचरण अमृत को पान
व्याख्यान महिमा परम
प्रयाग की हर वेदों में नाम
अविरल अदम्य भू स्वर्ग में
करती तेरी शोभा जो अभिराम
हे विष्णुपदी देवनदी
मंदाकिनी अगनित नाम
तेरी पावन हर लहर को
मेरा बारंबार प्रणाम।
