कितनों की निशानी.........!
कितनों की निशानी.........!
हे अविनाशी कोसो दूर रे,
कब कब इनका जुल्म हुआ,
किरण का प्रकाश है भारी,
तृष्णा है इन पानी की सारी,
एक कलम से निशानी छोड़ दी,
एक करवट पर गाड़ी मोड़ दी,
भाव भरा है फूलों सी सुगंध,
क्यों है अब इस धरती पर दुर्गंध,
जिस पथ पर चला था ,
वो पथ ही तो मिट गया,
जो पंछी का आशियाना था,
वो आशियाना ही उखड़ गया,
कर्म ने कर्ज से सर्वभावी,
आ सुरमा वाली धरती धोरा,
इस देश पर राज किया गौरा,
अब पीछे पड़े क्यों पिटते हो ढिंढोरा !