कितनी अलग हूँ मैं
कितनी अलग हूँ मैं
हूँ मैं नारी इसीलिए तो हूँ न्यारी
कोमलता से भरी फूलों की क्यारी
ममता में पली अपनी माँ की दुलारी
बना रही हूँ मैं अपने घर को फुलवारी
नहीं ग़ुरूर मुझे अपने रूप का
साथ एक सा दूँ साया धूप का
फिर भी शीतल ज्यों जल कूप का
सभी जटिल स्थितियाँ मैंने निखारी
जिस काम को ठाना वो पूरा किया
फिर भी ताने सुनती ‘सब बुरा किया’
अकेली रह ना किसिको अधूरा किया
दौड़ आयी पास जिसने जब मदद पुकारी
वरदान मुझे सूर्यवंशों निशाचरों का
दिन रात चलता पहिया हूँ घरों का
कब हो सकता मुझसे सामना नरों का
मेरी दौड़ के आगे वक़्त की रफ़्तार हारी
चाहे कभी ना रहूँ मैं उनकी प्यारी
पर ये कहने की नहीं उनकी बारी
अहंकार में चूर नरों
कितना भी तुम मुँह फेरो
मुझ बिन हार निश्चित है तुम्हारी
मुझ बिन नहीं किसी आँगन में किलकारी
खोज लो तुम पथ अपना
कहे तुमसे रहगिर तुम्हारी
क्योंकि ये मेरा जीवन मार्ग मेरी अपनी सवारी।