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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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किताब के पन्ने

किताब के पन्ने

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किताब के पन्ने जब लगे उल्टे खुलने

कुछ पन्नों पर धूल दिखी

तो कुछ में सीलन लगी दिखने 

शत-प्रतिशत धूप की जरूरत लगी पड़ने

किसी को तो हटा देने की तक,जरूरत लगी दिखने

कुछ पन्ने पर खुशनसीब थे

धूल के कण से भी वंचित थे 

खुशबू ही खुशबू से संचित थे  

मेरी जिंदगी के वो कुछ खास हिस्से थे  

रस्साकशी के नहीं वहां कोई किस्से थे  

हंसते खिलखिलाते ही बस सारे रिश्ते थे।


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