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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

Abstract

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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

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किसने रोका है तुम्हें !

किसने रोका है तुम्हें !

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किसने रोका है तुम्हें

एक झलक दिखलाओ न


बनकर के इन्द्रधनुष

आसमान में छाओ न


सतरंगी छटाओं को

आकर के बिखराओ न


गम की घटाएँ बरस चुकीं

अब तो तुम मुस्कुराओ न


एक बार तो फिर से तुम

जलवा अपना दिखलाओ न।


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