किसान
किसान
धूल धूसर भूमि मेरी,
अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ।
मेघ बोले घन -घनाघन बिजली
कडके कड़कड़ाहट,
पानी का एक बूंद पाउ,
अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ।
जब मैं पाउ वृंद विहंगम,
लोक कथाओं का हृदयंगम,
मन उपजता, तन उपजता
किन्तु अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ।
सार सारे पा चुका हूं,
गीत सारे गा चुका हूं,
किन्तु क्या बतला सकोगे ?
अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ।
मौन धारण हो चुका है,
अब विवशता है बड़ी ये
अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ,
अन्न उपजाऊ मैं कैसे ?
तुम बताओ तुम बताओ।