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किरमक

किरमक

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खामोश ख्वाब मेरे,

मुझसे आवाज माँगते हैं,

अंजाम नहीं मुझसे तो,

ये आगाज माँगते हैं।


बचपन गुजरा जिनको,

व्यस्त रखने में,

आज वो खिलौने,

मुझसे कामकाज माँगते हैं।


तन्हा छोड़ दिया,

पीछे जिन्होंने जमाने को,

आज वही लोग रहने,

के लिए समाज माँगते हैं।


परिंदे पाव जमीं पर,

जमाए रखना चाहते हैं,

किरमक आसमां छूने को,

परवाज़ माँगते हैं।।


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