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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Abstract

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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किरदार बैठा है

किरदार बैठा है

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बहुत गुमशुम मेरे अंदर मेरा किरदार बैठा है ।

जो सबकी धडकनों में था वहीं बेज़ार बैठा है ।।


मसीहा जो मुहब्बत बांटने आया था दुनिया में ;

कहीं कोठे की जद में वो बहुत लाचार बैठा है ।


मुकम्मल हो हरेक इन्सां नहीं मुमकिन जमाने में ;

न जाने किस गलत फहमी में तू बीमार बैठा है ।




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