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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

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Ratna Kaul Bhardwaj

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किधर रुख करें!

किधर रुख करें!

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कहकहे गूंजते है मयखानों में

सिसकियां तड़पती बन्द दरवाज़ों में

दिखावट हर तरफ रवायतों में

और सिर्फ छलावा अखलाखों में

बनावट भरी है जज़्बातों में

फितरत है दिल ओ दिमाग़ों में

बेबसी छुपी तंग लिबासों में

जिस्म फरोशी नुक्कड़ बाज़ारों में

अंगार दहकते हैं सीनों में

नफरत दिल के आबशारों में

मैं ही मैं की गूंज फ़िज़ाओं में

इंसानियत गुम है इंसानों में

किधर रुख करें ऐसे हालातों में

जब असर है बेअसर दुआओं में........

 


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