ख्वाहिशों का समन्दर
ख्वाहिशों का समन्दर
पत्र जो लिखा,पर भेज ना पाए
सोचा शब्दों की भाषा ,वो आँखों से समझ जाएं
कैसे समझाए दिले नादान को
कोई मर्ज़ हो जिससे दिल बहल जाए
पत्र जो लिखा वो भेझ ना पाए।
दिल के जज्बातों को समझा बुझा कर ,
प्यार की कलम को उसमें डूबा कर,
इन हाथों को लिखने पर मजबूर कर आये।
उनके सामने आते ही नजरें जो ना मिला पाए।
पर हाँ ये भी तो सच था, ये दिल उनके हवाले कर आये
पत्र जो लिखा, पर भेज ना पाए।
ख्वाहिशों का समंदर तो,
उनका ताउम्र साथ पाना था,
किस्मत की लकीरों को,
उनतक मोड़ लाना था,
पर सजा देकर खुद को, बेबस लौट आये
पत्र तो लिखा पर भेज ना पाए।

