ख़्वाबों की गुल्लक
ख़्वाबों की गुल्लक
ख़्वाबों की गुल्लक में
सहेजे जा रही हूँ,
न जाने कितने सपने..
कुछ बचा के रखे हैं
तुम्हारे लिये
बाक़ी मेरे हिस्से के
जिये जा रही हूँ ..
मिले वक़्त तो तुम भी
डाल देना कुछ
बातों के खनकते सिक्के
कुछ हसीं यादों की मोहरें..
मैं ख़ुश हूँ तुम जो हो साथ,
अहसासों की वसीयत
इस ख़ूबसूरत रिश्ते के
नाम किये जा रही हूँ
बस ज़िंदगी ख़ूबसूरत
है बहुत
उसी के सजदे में
मुस्कुराते जिये जा रही हूँ