ख़्वाब
ख़्वाब
हर रोज़ यूं ख्वाबों में आया न कर,
आज भी में तेरी हूं, ये जताया न कर...
उलझने अभी तक सुलझी नहीं,
यूं रोज़ मिल के तू बढ़ाया न कर...
वक्त चहिए मुझे तुझसे निकलने को,
यूं बेवक्त आ के नींद चुराया न कर...
मुआफिक है ये खामोशियां अब मुझसे,
तू कह के यूं बात बिगाड़ा न कर...
गम, खुशियां कुछ रास नहीं मुझे अब,
यूं चुपके से आ के तू मुस्कुराया न कर...
ख़्वाब की तरह ज़िंदगी भी बिखरी है,
तू धीरे से आ के उसे सहलाया न कर...
मेहनत खूब लगती है, फिर से पटरी पे आने को,
मंज़िल से मुझे तू भटकाया न कर...
हर रोज़ यूं ख्वाबों में आया न कर...!