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Archana Verma

Romance

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Archana Verma

Romance

ख्वाब और हक़ीक़त

ख्वाब और हक़ीक़त

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जो चाहूँ वो पाऊँ

तो कैसा हो?

ख्वाब और हक़ीक़त 

अगर एक सा हो?


न कोई खौफ हो दिल में 

तुमसे बिछड़ने का 

तू हर लम्हा 

सिर्फ मेरा हो। 


मैं हर शाम करूँ इंतज़ार तेरा 

बन संवर के, 

मेरे सिवा तेरा 

कोई और पता 

न हो। 


बैठ बगीचे में निहारा करें 

उन दो फूलों को, 

जिन्हे हमने अपने 

प्यार से सींचा हो। 


तेरी सिगरेट के हर 

कश पर निकलता था 

दम मेरा ,

अब तेरे लबों पे 

हक़ सिर्फ मेरा हो। 


एक चाँद रात में 

मिले थे हम तुम, 

अब हर रोज़ वो चाँद 

हमें साथ देख रहा हो। 


रहूँ साथ तेरे,जियूँ साथ तेरे 

लाख शिकायतें सही, 

पर दिलों में दूरियां 

न हो। 


पर सब मिल जाये 

तो आरज़ू किसकी होगी, 

जिंदगी कितनी बोर होगी 

जिसमे पाने को 

कुछ बचा न हो ?



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