खून !
खून !
मैं खून बोलता हूँ,
वाहवाही मिली नही मुझको अबतक।
मैं खून बोलता हूँ,
के मुझसे सना हुआ गंगा का तट।
कितना भी टोके तलवारे,
चुप रहना नही है काम मेरा,
कायम जितना जीवन मे हूँ,
उतना बहने में नाम मेरा।
मै खून बोलता हूँ,
मेरी बोली में सब कुछ है मेरा,
मैं खून बोलता हूँ,
के रहना दूर, यही मेरा डेरा।