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Kamaldeep Kaur

Tragedy

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Kamaldeep Kaur

Tragedy

खुशी छूकर निकल जाती है...

खुशी छूकर निकल जाती है...

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इतने ग़म मिले की आंसू सूख गये

कि अब रोना भी चाहो तो मन नहीं करता,


बड़े ही घाटे का सौदा है ये सांस लेना भी

उम्र बढ़ती है और जिंदगी कम हो जाती है,


कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची,कभी अपनी बेकसी बेची,

चंद सांसे खरीदने के लिए रोज थोड़ी सी जिन्दगी बेची,


पर इन्ही ग़म की घटाओं से

ख़ुशी का चाँद निकलेगा

अँधेरी रात के पर्दे में

दिन की रौशनी भी है…!


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