नए अरमान सजाते हैं ...
नए अरमान सजाते हैं ...
रात की बाहों में,
नए अरमान सजाते हैं।
बहते हुए आंसुओं से,
नई इबारत को लिखते हैं।
दिए की रोशनी कम सी मगर,
उससे नए चिराग को जगाते हैं।
गमों के बदल गहरे से मगर,
उसमें चांद के उजियारे को ढूंढ लाते हैं।।
