खुश हूं मैं
खुश हूं मैं
खुश थी मैं, खुश थी मैं यह जानकर कि
पल रही है मुझमें एक नन्हीं जान।
लड़का हो या लड़की,
मेरे लिए तो थे दोनों ही एक समान।
यह मेरा पहला बच्चा था,
मन में उसके लिए मेरा प्यार सच्चा था।
जो भी हो बस स्वस्थ हो,
मेरा तो बस यही एक सपना था।
जब सास को पता चला तो
उनसे मैंने यह आशीष पाया,
भगवान एक पोता दे दे तो
समझूंगी कि मैंने मोक्ष पाया।
मैंने पूछा पोता ही क्यों,
पोती क्यों नहीं ? तो जवाब आया,
पोती का क्या करना है
वंश तो चले तभी जब बेटा आया।
कुछ दिन बीते तो मायके की याद सताई,
मां से मिलने गई तो मुझे
गले लगा कर उनकी आंख भर आई।
नानी बनने वाली थी यह जानकर
वह फूली नहीं समाई,
बोली जल्दी से एक नाती हो जाए
तो कुआं पूजन पर बजेगी शहनाई।।
जिनसे भी मिली मैं सबने बस यही बात दोहराई,
लेकिन यह बात मैं समझ ना पाई।
आखिर क्यों नहीं किसी ने भी बेटी होने की इच्छा जताई।।
आखिर फर्क ही क्या है बेटे में और बेटी में,
इस सवाल का जवाब मेरा दिल ढूंढता रहा।
जवाब में मेरे हाथ कुछ ना लगा और ना ही समझ पाई मैं,
कि आखिर क्यों यह समाज बेटा ही है मांग रहा।।
नन्हीं जान के दुनिया में कदम रखने का दिन आया,
असहनीय पीड़ा से गुजर कर बेहोश हो गई थी मैं
बहुत देर बाद जब मुझे होश आया।
मेरा सारा दर्द भूल गई थी मैं,
जब मैंने मेरी गोद में मेरी बेटी को पाया।।
आज खुश हूं मैं,
बहुत खुश हूं मैं।
कि जन्म दिया मैंने उसी रूप को
जिस रूप में मैंने जन्म पाया।
