खुद की खोज में
खुद की खोज में
खोज में निकल गया हूं खुद की ,
भटक रहा हूं मंजिल की राह में !
अब एहसास खुद की भी खामोश रहती है मेरी ही अपनी हर आह में !
न किसी की कोई साया है ,न किसी का कोई छाँया है!
जहाँ देखो वहाँ चारों तरफ बस माया- ही - माया है।
हो गई दुनिया गजब सचमुच कितनी बेहया है!
मैंने डूबते हुए दीये को लौ प्रज्ज्वलित कर
अपने संघर्ष रूपी बाती से हर तुफान में जलाया है ।
निकल गया हूं मैं, खुद की खोज में !
खुद को खोजकर ही अब दम लेना है !
चाहत कभी भी न खत्म कर लेना है !
हँसते- हँसते सब सितम सह लेना है ।
न भूख का ख्याल, न प्यास की चिंता है ।
अब बस भूख है तो बस मंजिल की !
वही मेरी आसमां को छूने का एकमात्र परिंदा है ।
खुद की खोज में निकल गया हूं,मैं !
निकल गया हूं मैं खुद की खोज में।।