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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

खुद बदल रहे हैं

खुद बदल रहे हैं

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सदियों से खुद को बदलते रहे

बदलकर ठहरे 

फिर चले गये।

यादों का समुन्दर है

हमें बदलते हुये

गुजर जाने का।

पढ़ लें

वेद में

शास्त्र में

पुराण में

किताब में

समय में,

और आजकल हम फिर बदल रहे हैं।

माँ के मानस पुत्र से हम

उसमें रचने बचने की कोशिश में

मनुष्य बन रहे हैं

नाप रहे हैं अपने से अपनी दूरी

कम कर रहे हैं 

अपने से अपना फासला

समय है हमारे पास अभी

खुद में मिल जाने का

और विखरते हुये

गुजर जाने का।


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