कहती है प्रकृति
कहती है प्रकृति
एक दिन यूँ ही यह ख्याल
मेरे मन में आया, हम मानव ने इस
हरी-भरी घरती को सूखा क्या बनाया?
यह नदियां जो स्वच्छ थी
सतत लोक कल्याण में बहती रहती है
इसे भी हमने प्रदूषित बनाया
एक दिन यूँ ही यह ख्याल
मेरे मन में आया, हम मानव ने इस
हरी-भरी धरती को सूखा क्यो बनाया?
सोचो, अगर यह प्रकृति और पर्यावरण
स्वच्छ और हरे ना रहेंगे
नदियां और सागर यूँ ही प्रदूषित होते रहेंगे
तो नुकसान किसका होगा? और
कौन इसकी भरपाई करेगा?
निःसंदेह इसके जिम्मेदार हम मानव हैं
इन्हें प्रदूषित करने में, क्योंकि
अभी तक कोई भी जानवर नहीं आया
एक दिन यूँ ही यह ख्याल आया
हम मानव ने इस हरी-भरी धरती को
सूखा क्यो बनाया?
ये प्रकृति और पर्यावरण भी हमसे कहते हैं
ले जाओ अपनी आवश्यकता वाली
चीजें, पर हद से ज्यादा
हमारा दुरुपयोग ना करो,पर इनकी
बातों को हम मानव
को समझ मे नहीं आया
एक दिन यूँ ही यह ख्याल
मेरे मन में आया
हम मानव ने इस हरी-भरी धरती
को सूखा क्यो बनाया?
