खरीददार
खरीददार
मेरी आवाज बस गई है उसके कंठ में,
जिससे मैंने चुप्पी रागनी की तर्ज में ली थी।
मेरी मुस्कुराहट महक रही है उसके ओंठों पर,
जिससे मैंने अश्कों की बूंदें मर्ज में ली थी।
कसम से मेरा सुकून गिरवी है आज भी उसके पास,
जिससे मैंने मुहब्बत कर्ज में ली थी।