कहर
कहर
दुनिया क्यों व्याकुल है
हर मौहल्ले हर शहर में,
कोई शख्स नहीं दिखता
इस भरी दोपहर मे।
यह रब की मर्जी या दूनिया का कहर है,
हरेक इंसान घर में कैद है।
बनाये थे पिंजरे जो चन्द पंक्षियों के लिए,
आज हर इंसान उसमें कैद है।
कुतरे थे पंख न उड़ने के लिए जिसने,
आज खुद के लिए हवालात है।
कब सुधेरगा सुदर्शन ये इंसान,
समझने के लिए काफी ये कोरोना लहर है।
सुधार ले तू अभी भी आपने आप को इंसान,
न जाने कितने दिनों की तेरी चहल पहल है।
समझ में नहीं आता कैसा है ये समय,
रब की मर्जी या दूनिया का कहर है,
हरेक इंसान क्यों घर में कैद है।
भूल चुका है इंसान शायद खुदा को,
अय्यासी के चक्कर में,
ये दौलत ये सोहरत क्या वंगला क्या गाड़ी,
यहीं रह जांऐगे सारे के सारे
कर ले इबादत खुदा की ऐ वन्दे, वैठा है तू किसके सहारे,
वोही कर सकता है दूर हर मुश्किल तेरी को,
न देख ये झूठे नखरे नजारे।
समझ ले सुदर्शन तू उसकी नजर को,
उसको तो पल पल की खवर है,
कोई शख्स नहीं दिखता
इस भरी दोपहर में ये रब
की मर्जी या दूनिया का कहर है, हरेक इंसान घर में कैद है।