खोटा सिक्का
खोटा सिक्का


खोटा सिक्का आखिर चल गया
कड़ी धूप में आकर खिल गया
जिस सिक्के को मैंने सोना माना,
उसने दिया,मुझे गम का तराना
टूटी उम्मीदों में,जब जल गया
खोटे सिक्के को,में निगल गया
उसी खोटे से काम निकल गया
में डूबते दरिया से निकल गया
खोटा सिक्का आखिर चल गया
सोने से ज़्यादा वो पिघल गया
अच्छे सिक्कों ने जब साथ छोड़ा
खोटे सिक्के ने टूटे दिल को जोड़ा
इससे आख़िर तम आंखे मल गया
इससे जिंदगी का खेल चल गया
खोटा सिक्का आख़िर चल गया
झूठे ज़ग में दोस्त निर्झल बन गया!