खोने नहीं देती
खोने नहीं देती
दरिया में कही सफिने तू डुबोने नहीं देती
किसी मुश्किल में हिम्मत कभी खोने नहीं देती।
मोहब्बत छोड़ जाती हैं यदि मझधार में तुमको
तू बाजी हार के भी खुद को रोने नहीं देती।
संवेदना आंसुओं को अब तेरे भिगा नहीं सकती
मोतियाँ तू कभी शबनम के पिरोने नहीं देती।
सुनो मुझसे जुदा हो के जुदा तू हो नहीं पाई
तन्हाई भीड़ की तुझको मेरा होने नहीं देती।
तू जलती हुई क्या इस रेत पर चलती ही रहती हैं
ये क़िस्मत क्यों तुझे मख़मल के बिछौने नहीं देती।
महंगाई किसानों की कमर जब तोड़ सकती है
तू धरती में कोई अब बीज क्यों बोने नहीं देती।
देती रहती हैं तसल्ली हर वक्त तुझको तेरी ही माँ
किसी भी हाल में मायूस तुझे सोने नहीं देती।
वक्त जब भी बुरा आया तो ये बेकार की दुनिया
कभी त्यौहार में बच्चों को खिलौने नहीं देती।
"नीतू" ये मन तेरा तो आज भी गंगा के जैसा हैं
सजा दूँ ख्वाब फिर मैं तेरे तू सजोने नहीं देती।
