कहीं घूम आएँ ....
कहीं घूम आएँ ....
जीवन की नीरसता को कहीं दूर छोड़ आएँ ...
चलो सरसता और ताज़गी को गले लगाएँ ...
छोड़ के सारी चिंता और परेशानी की गठरी ...
हम चलो कहीं नगर से दूर पहाड़ों में घूम आएँ !
महानगर के शोर शराबे से दूर ...चलो ..
कुछ शान्ति के प्यारे लम्हे अपने दामन में ले आएँ !
बहुत दिनों से हंसी ठिठोली को जो भूले ...
चलो उन प्यारे मुस्कुराते पलों को ....
अंजलि में फिर भर कर के ले आएँ !
नीले आसमान को देखे अरसा हो गया ...
हरी भरी धरती को न जाने कब देखा था ..
चलो सारा परिवार मिलकर भूली हुई..
खुशियों की घड़ियों को ढूंढ लाएँ .....
चलो कहीं पहाड़ों पर घूम आएँ....
