ख़याल
ख़याल
लिखूँ अभी कि रुक जाऊँ यहाँ,
मिलेंगे कब हम जान ए जहॉं
शुरुआत तो तुम थी खो गयी कहाँ,
पता बता दो पहुँचूँ मैं वहाँ
सही गलत की कुछ खबर ना थी,
पास मेरे ज़हर ना थी
लिखने की कोई वजह ना थी,
लौटने को पास मेरे मेहेर ना थी
शुरू जो हुआ तो कहीं रुका नहीं,
ग्रहण जो लगा तो कहीं दिखा ही नहीं
भरे आसमान में तारा अकेला मैं टिमटिमाता रहा,
रोशनी पड़ी कभी तो याद मैं तुमको आता रहा
दूर जो हुआ तो सर्द हवाएं कंपकंपाने लगी,
पास आया तो तपन तुम्हारी जलाने लगी
घायल होने लगा मैं तुम्हारे प्यार में,
खबर आ गयी सुबह के समाचार में
ज़िन्दगी गुज़र गयी तुम्हारे इन्तजार में,
आयी भी तुम तो बस मेरे ख़्याल में।