ख़याल है तू मेरा
ख़याल है तू मेरा
रात दिन यही अब तो बस ख़याल आता है
तल्ख़ बात का उसकी ही मलाल आता है
हर अदू जला दूं अपनें यहाँ मगर यारों
खून में बहुत मेरे ये उबाल आता है
कर गया दग़ा क्यों दी ख़ूब वफ़ाएं जब
बस यही लबों पर मेरे सवाल आता है
रोज़ नफ़रतों की ही गोलियों बहुत आती
अब इधर मुहब्बत का कब गुलाल आता है
नाम जब नहीं है अल्लाह का किसी लब पर
इसलिए यहाँ ऐ लोगों बवाल आता है
बोलने कि उसको ही कब तमीज है देखो
तल्ख़ बस उसे करना बोलचाल आता है
प्यार का निभाना आता नहीं उसे रिश्ता
आंखों से उसे करना बस कमाल आता है
ग़ैर हो गया है आज़म उसकी नजर में ही
पूछने नहीं मेरा वो अब हाल आता है।