ख़्वाब
ख़्वाब
ख़्वाब बनते जो कारखानों में
बिकती ताबीर फिर दुकानों में
दर बदर फिरती है मुहब्बत अब
पल रही बेरुख़ी मकानों में
गर्दिशों में है बख़्त का सूरज
धूप अटकी है सायबानों में
एक तहज़ीब अपने साथ लिए
रंग सिमटे थे पानदानों में
ख़ुद में सिमटे हैं साथ रह कर भी
जैसे रिश्ते हों मर्तबानों में
नफरतों की ये कश्तियाँ तौबा
प्यार हंसता है बादबानों में
कोई मशहूर हो गया जग में
ज़िक्र करके मेरा फ़सानों में।
बख़्त ,,, क़िस्मत
सायबानों,,मकान के आगे का छाजन
