ख़ुदा का रहम करम
ख़ुदा का रहम करम
इश्क में कौन पूछता कौन साँ धरम है।
ये तो बस उस ख़ुदा का रहम करम है।।
किसी की कमी इतनी खलनी लगे तो
समझ जाना वो जिंदगी में अहम है।
वो ना होकर भी हर जगह नजर आए
तो समझ जाना कि वो सिर्फ वहम है।
हो मुलाकात मुसाफ़िर की तरह कही
तो समझना ये उस ख़ुदा का करम है।
मिले थे पर नजर ,नजरो से ना मिले
तो समझ जाना मोहब्बत का शरम है।
हवा की तरह बहता इश्क इस सँसार में
हर किसी का दिल इश्क़ से हुआ नरम है
जुदाई में जल रहा पूरा तन मन ये बदन
इश्क़-ए-आग में जलकर हुआ गरम है।
इश्क में कौन पूछता कौन सा धर्म है।
ये तो बस उस ख़ुदा का रहम कर्म है।।