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Ramesh Mendiratta

Abstract

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Ramesh Mendiratta

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खौफ ए हिज्र

खौफ ए हिज्र

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दूरियों ने जलाये चराग़

यादों के जाजिरों पर,

परेशां बेसबब कोई सहारा तो हो

चराग़ जलते रहे,

बुझते रहे,

दूरियों में

दिल परेशां,

जाँ परेशां,

हमसफर कोई न था

देखे थे जो ख्वाब

मुक्कमल न हुए,

बढ़ता जाता था

खौफ ए हिज्र

रफ्ता रफ्ता 



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