कहानी
कहानी
खैर...
रुकाव मुझमें नहीं, झुकाव तुझमें नहीं
ठहराव मुझमें नहीं, बहाव तुझमें नहीं
चल टेढ़े मेढ़े मोड़ पर ह़क से मिलते हैं
बिंदास दिल-ए-किताब हवा में खोलते हैं
आधी अधूरी बात फिरसे टटोलते हैं
यादों की गठरी खोलते हैं
कुछ तुम बयांं करो, कुछ मैं बयां करूं
बेइंतहा इश्क़ की बेपनाह कहानी ।

