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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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कहानी सी कविता

कहानी सी कविता

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एक कविता

ठीक ठीक कहानी लगती है

कभी विचार जनती है

कभी अच्छाई और बुराई के बीच

एक विभाजन रेखा खींचती है

कभी जिद करती है


मैं ही कविता हूँ

और रंग देती है

पूरे परिवेश को युद्ध के रंग में।

एक कविता है


जो असहमतियों के अम्बार में

एक दूसरे के अस्तित्व का

सम्मान करते हुए

सबको एक दूसरे से जोड़ देती है

ये कविता बनी रहनी चाहिये


ये जीवन के प्रति

एक सार्थक नजरिया है

और सचमुच कविता को

कहानी नहीं 

जीती जागती चलती फिरती


अस्तित्व की तस्वीर होना चाहिये

और जब भी कभी ऐसी होती है

ऐसी मतलब अस्तित्व की पक्षधर तो

वो स्त्री से पुरूष बन जाती है


और पुरूष में स्त्रीत्व

जाग उठता है

और उसकी सक्रियता से

असहमतियां सिमट का

इंसान का हिस्सा बन जाती है


और कविता एक अदद 

मनुष्य लगने लगती है।


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