कहाँ रहती हो
कहाँ रहती हो
कहाँ रहती हो आजकल दिखती भी नहीं,
न बोलती हो, न हँसती हो, चहकती भी नहीं,
कल तक तुम्हारे आने से रहती थी बगिया गुलज़ार,
आज कलियों की तरह महकती भी नहींI
कभी गौर से सुना करती थी हर एक बात मेरी,
अब तो जज़्बातों को मेरे समझती भी नहीं,
हर वक़्त खोया रहता हूँ यादों में तेरी,
रात निकल जाती है पलकें झपकती भी नहीं।