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Surendra kumar singh

Abstract Others

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Surendra kumar singh

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कहाँ जाओगे

कहाँ जाओगे

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कहाँ जाओगे पथिक

कृष काया पर

जिम्मेदारियों का बोझ उठाये

कहाँ जाओगे

इस वीराने जंगल में

क्या पाओगे।


यहाँ से थोड़ी दूर

बायीं तरफ मैदान में मंच सजा है

तकरीर चल रही है

कौड़ी के मोल बेचे गये

कारखाने में बेरोजगार हुये

मजदूरों की हमदर्दी में

प्रबंधकीय क्षमताओं की कुड़ेदानी पर

संवाद चल रहा है।


मैदान के बीचोबीच

आदमकद मूर्ति के आधुनिक

शिलालेखों को पढ़ते हुये

थोड़ा आगे निकलकर

दायी तरफ मैदान में

लगे उदार मेले का

लुत्फ उठाओ

हटती हुयी बाधाओं के माहौल में

नवागन्तुकों की

बढ़ती हुयी भीड़ के

फैलते हुये बाजार और

उपभोग की मजेदार

सस्ती सस्ती चीजों का

मुआयना करो।


नयनाभिराम सुंदरियों के

अधखुले वक्षों के बीच

आमंत्रण देती निगाहों के

शीतलपेय को गटकते हुये

सुख और शान्ति का आनन्द लो।


कहाँ जाओगे पथिक

इस वीराने जंगल मे

क्या पाओगे

थोड़ा और आगे

निषिद्ध सेवाओं में प्रवेश

और निषिद्ध ज्ञान हासिल करने के

हिंसक प्रबन्ध के

दमनकारी दमन का अंदाज देखो

प्यार की पराकाष्ठा में हिंसा

और प्यार के इजहार में दमन

हिंसा और दमन के बीच

आने वाले लोकतंत्र की

दस्तक सुनो

और उससे तालमेल बिठाने की

मनस्थिति पैदा करो


दमन और हिंसा से बचकर

कहाँ जाओगे

उधर देखो पथिक उधर

ज्ञान बंट रहा है

ज्ञान गढ़ा जा रहा है

ज्ञान फुटबाल की तरह

लुढ़काया जा रहा है

गुरु और शिष्य की

आधुनिक परम्परा का दर्शन कर

कृतार्थ हो

सम्पन्न दरिद्रता से

और दरिद्र सम्पन्नता से

बचकर कहाँ जाओगे

इस वीराने जंगल मे

क्या पाओगे।


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