कहाँ गया वह प्रकृति पुत्र
कहाँ गया वह प्रकृति पुत्र
आज बली चढ़ गई
एक परवाने की।
कट गया उन्नति के नाम पर
था वह प्रकृति प्रेमी पर।
खत्म हो गया आधुनिकता के नाम पर
आज फिर जरुरत थी
एक और बहुगुणा की।
पर नहीं दिया उसे कोई दिखाई
इसलिए सो गया वह चिर निद्रा में।
