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3125 Akash Tiwari

Fantasy Inspirational

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3125 Akash Tiwari

Fantasy Inspirational

खामखां कि ख्वाहिशे

खामखां कि ख्वाहिशे

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कही अनकही कुछ ख्वाहिशे हमने भी करी है नादानी में

पर फिर जैसे- जैसे उम्र बड़ी घर कि जिम्मेंदारीयो के बोझ ताले वो खामखां कि ख्वाहिशो भी बिखरती रह गई 

वो बाते जो पहले करता था मै असमां को जमी पर लाने कि

अब तो बाते मेंरे आफसानो और कविताओं में निखरती रह गई 

असल में सवाल अब ये नही होना चाहिए कि जब ख्वाहिशे बिखरी तो उस रात एक पल भी मै रोया कि नही 

बल्कि सवाल तो ये होना चाहिए की जब पता लगा कि अब से जिम्मेंदारीया उठानी है उस रात एक हाथ में अपनी ख्वाहिशो कि राख लिए और दुसरे जिम्मेंदारीयो का बोझ लिए उनको आपस में तोलता रहा और हर बार मेंरी खामखां कि ख्वाहिशे हार गई ये देख मै सोया कि नही ।।

कही अनकही कुछ ख्वाहिशे हमने भी करी है नादानी में

जब दूर गई तो हमसे तो लगा जैसे मेंरा कोई हिस्सा जा रहा हो 

जीना तो था जिम्मेंदारीयोके साथ पर आँसू भी बेवक्त आते थे 

तब से, 

आँसू को मै कभी बारिश, त्योहार की खुशी तो कभी काम से आने वाले पसीने की आड़ मेंं छुपा लेता हूँ, 

घरवाले पूछते हैं कि क्या हुआ, मै उनका दिल रखने के लिए मुसकरा देता हूँ,

कई मरतबा तो ,

आंखो से आँसू खुशी या गम के यूँ बहने न दिए

रख लिया समेंट कर उन्हे समय के आँचल मेंं 

कि कभी सूखा ये दरिया ख्यालो का 

 और दिखे किनारे हमें,

तो गम के किनारो पर बैठ खुशी के 

और खुशी के किनारो पर बैठ गम के 

आँसू उस सूखे दरिया मेंं बहा देंगे

हाँ, कही अनकही कुछ ख्वाहिशे हमने भी करी है नादानी में, पर

अब अपनी नई जिंदगी से उतना खुश तो था नही तो मै शयाद हसना भी भुल गया था 

तो किसी ने पुछा तुम हँसते ही नही फिर मैने कहा कि

दुख को छुपाने के लिए जो कुछ पर्दे हंसी के थे वो हटा चुका हूँ ,शयाद तभी हर बात पर हंसी नही आती 

आँसू को समेंटने का सलीका हमें भी आ गया हो, क्या पता

तभी आंखो में जब तक तिनका न गिरे इनमें नमी नही आती

गगन कि तरफ देखा तो लगा कि सारे राज चलो बादलो से साझा किए जाए तो कह दिए कुछ राज उससे भी 

फिर भी न जाने क्यों रातो को बहते मोतीयो में कभी कमी नही आती ,

रूदाद में लोगो कि आज भी पढता हूँ पर मेंरे इस मन को, 

तस्कीन मिले उस रूदाद से जब उसमें स्वार्थ की बेड़ियों से मुक्त कोई आश मिले 

खुदबखुद मेंरा दिल अक्षम -सा हो जाए समक्ष उसके जब मुझे कोई ऐसा खास मिले 

सबकि इच्छा उस अभ्र को पाने कि जब पंक्षियो के पर जले वो चहरे मुझे निराश मिले 

दबा के गला वांछ का हम आगे बढे पर जब कब्र खोदी ख्वाहिशों कि तो उनमें सिर्फ दिखे मुझे मिरी जिम्मेदारियाँ ना मुझे कोई लाश मिले 

कही अनकही कुछ ख्वाहिशें हमने भी करी है नादानी मेंं।


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