केशव की वंशी
केशव की वंशी
छेड़े कान्हा जब वंशी की तान रे
मच जावे उथल पुथल वृंदावन में
मोहन के बड़े तीखे हैं ये बाण रे।
बह गये दूध गायों के थन से
रह गये फ़िर भूखे प्यासे बाछे सारे
आज फ़िर पीटेंगे बाल ग्वारे
बड़ी महँगी यारी तेरी मोहन प्यारे।
जल गयी रोटियाँ तवों पर
ढुल गये छाछ के भरे प्याले
हाय क्या खिलायेगी ग्वालीने
घर लौटेंगे ग्वाले जब थके हारे ॥
काजल बह गया गालों पर
होठों पे अलता लगा बैठी
गिरा आँँचल किसी गोपी का
तो कोई मुन्डेर पे जा बैठी।
कि जमुना भी चाल भूल गई
मछलियाँ भी राह भटक गई ।
गोवर्धन भी उधर सरकने लगा
बादल रिमझिम बरसने लगा ।
किया केशव ने सबको बदनाम
बिना छुए लूट ली सबकी लाज
अच्छी नहीं गोविंद तेरी ये बात ॥

