कदम रुके नहीं
कदम रुके नहीं
ठोकरें कदम-कदम
कंकरीले-पथरीले रास्ते
सांय-सांय करती हवा
खुसपुसाते पेड़
चुनौतियाँ देते गड्ढे
पर हम चलते रहे।
कदम रुके नहीं
गरजते बादल
चेतावनियां देती बिजलियाँ
फूलों की झरती पन्खुड़ियाँ
पीली पड़ती पत्तियां
आग बरसाता दिवाकर
पर हम चलते रहे
कदम रुके नहीं
काटने को दौड़ते बड़े-बड़े दिन
अपनी ऊंचाई जताते पेड़
दूरियाँ तय करते मील के पत्थर
थकान का अहसास दिलाते
पांवों के छाले
और उनमे झलकता रक्त
पर हम चलते रहें
कदम रुके नहीं।
मरुथल सा जीवन
रेत में धँसती हुई एड़ियां
हलक में सूखती जुबान
अंतिम सांसे लेते ख्वाब
सन्नाटे की घण्टियाँ
पथराती आँखें
पर हम चलते रहें
कदम रुके नहीं।
