"कच्ची सिलाई "(ग़ज़ल)
"कच्ची सिलाई "(ग़ज़ल)
सारी उम्र गुज़री यूँ ही
रिश्तों की तुरपाई में
हर रिश्ते में सिलने की
मशक़्क़त बहुत की पर
रिश्ते बस दम भरने भर के
निकले कहीं आरज़ूएं बहुत थी।
कुछ रिश्ते की तुरपाई भी ना
बचा सकी उधड़े कच्ची सिलाई में
हमनें मशक़्क़त बहुत कि पर
कुछ रिश्ते वक़्ती ही निकले।
जब थी ग़रज़ तो अपनों से
ज़्यादा क़रीब थे, हुई ग़रज़ पूरी
तो नज़रें भी फ़ैर ली।
सारी उम्र गुज़री यूँ ही
रिश्तों की तुरपाई में
रिश्ते महज़ खून के ही
सच्चे होते पर मां जाया
भाई का रिश्ता भी कच्ची
सिलाई सी उधड़ने लगा।
सारी उम्र गुज़री यूँ ही
रिश्तों की तुरपाई में।