क़बूलनामा...!
क़बूलनामा...!
लिख दूँ इश्क़ या दर्द बहा दूँ,
लब्ज़ों से अपने हर मर्ज़ बता दूँ।
ऐ सनम कह के तो देख एक बार तू
तेरे इश्क़ में मैं अपना सर भी झुका दूँ।
इश्क़ किया तो इम्तिहान भी क़बूल
तेरे सजदे में साँसों का,
हर एक क़तरा भी क़बूल।
अब और ना आज़मा तू दे सनम,
दिल के भँवर का किनारा तो बन।

