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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

4.5  

Nalanda Satish

Abstract Tragedy

कब्र

कब्र

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कब्र ने नजर उतार दी लड़खड़ाते जिंदगी की

अब तो मक्कारी और जालसाजी से बाज आओ


इस जलते जंगल ने अनगिनत बलि ले ली मजलूमों की

अब तो आग लगाने और भड़काने से बाज आओ


हमारे हिस्से का समंदर तुमने हौले हौले छीन लिया 

अब तो छीना झपटी और कपट से बाज आओ


लाशें गिर रही है आसमां से बरसात जैसी

अब तो फरेब खाने और झूठ छुपाने से बाज आओ


झपट्टा मार रहे हो  जैसे की बाज शिकार पर

अब तो अपनो का खून पीने और उत्सव मनाने से बाज आओ


नंगे हो गए हैं सब "नालन्दा" चीरहरण करके लुप्त हुए

अब तो साजिशों की दगाबाजी से बाज आओ


कहाँ यह चमन अमलतास की तरह खिल रहा था

अब तो माटी और वतन की आबरू से खेलने से बाज आओ



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