कौन जिम्मेदार
कौन जिम्मेदार
अक्सर मेरे मन में ये सवाल आता है
जात पात ऊंच नींच छोटा बड़ा
ये सब कौन बनाता है
कौन है जिसने मानवता को
अपने मन से बाँट दिया
बस अपनी इच्छा के खातिर
जो चाहा जिसको नाम दिया
हमने अपने हित के खातिर
धर्म बीज़ को पाट दिया
हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई
कई नामों में बाँट दिया
प्रथा पुरानी देव काल की
पीढ़ियों तक चलती आई
रूप बदला हर युग में इसका
स्वरूप मगर वो ले आई
ऊपर वाले के कारखाने में
सबका एक हीं ढांचा है
वही हाँर है वही मांस है
वही जीवन का खाका है
उसकी नज़रों से देखो तो
हम सब एक समान है
रंग रूप से भले अलग हो
पर हम सब इंसान है
उसकी सुंदर सी दुनिया में
धर्म क कोई नाम ना था
भेद भाव और कर्म कांड का
तब तो कोई काम ना था
हमने अपने स्वार्थ के आगे
उसका है तिरस्कार किया
इसी लिए उसने भी अपना
पूजा ना स्वीकार किया।