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vinod mohabe

Abstract

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vinod mohabe

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कौआ

कौआ

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कौआ 

सुबह-सुबह कांव-कांव करता था

कांव-कांव करके घर के छत पर बैठता था

गाव में मयत हुई तो

रोते-रोते सब गाव को बताता था !


साथी मर जायें तो

सभी साथी को इक्काठा करता था

साथ में सब रोकर

शोक सभा भरवाता था !


श्राद्ध करके इन्सान घर पर नैवद्य डालता था

उसका बाप बनकर पहली चोच कौआ मारता था

परिसर में गंदगी हो तो

गंदगी को दूर भगाने कौआ आता था !


घार के पंखो पर बैठकर चोच से घायल करता था

अपने से भी बलवान को न डरता था

कांव-कांव करके वो

पेड पर जाकर बैठ जाता था !


कोयल के अन्डो कि सांप से भी रखवाली करता था

उसके बच्चे को भी संसार दिखाता था

कांव-कांव करते खाना लाता था

अपने बच्चो के चोच में डालता था !


अब कांव-कांव कौन करेगा ?

हमें निंद से कौन उठायेगा ?

सारा जहां ढूंढ रहा है ये इन्सान

बुला बुला के थक गया है ये इन्सान !  


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