कौआ
कौआ
कौआ
सुबह-सुबह कांव-कांव करता था
कांव-कांव करके घर के छत पर बैठता था
गाव में मयत हुई तो
रोते-रोते सब गाव को बताता था !
साथी मर जायें तो
सभी साथी को इक्काठा करता था
साथ में सब रोकर
शोक सभा भरवाता था !
श्राद्ध करके इन्सान घर पर नैवद्य डालता था
उसका बाप बनकर पहली चोच कौआ मारता था
परिसर में गंदगी हो तो
गंदगी को दूर भगाने कौआ आता था !
घार के पंखो पर बैठकर चोच से घायल करता था
अपने से भी बलवान को न डरता था
कांव-कांव करके वो
पेड पर जाकर बैठ जाता था !
कोयल के अन्डो कि सांप से भी रखवाली करता था
उसके बच्चे को भी संसार दिखाता था
कांव-कांव करते खाना लाता था
अपने बच्चो के चोच में डालता था !
अब कांव-कांव कौन करेगा ?
हमें निंद से कौन उठायेगा ?
सारा जहां ढूंढ रहा है ये इन्सान
बुला बुला के थक गया है ये इन्सान !
