कैसी पीड़ा
कैसी पीड़ा
कैसी पीड़ा आज सता रही है,
दुःख मानवता का हर लो बता रही है
कहाँ से कहाँ का सफर है, ये बता रही है
पीड़ा जन जन की हर लो समझा रही है
हर पल संदेश मुझ तक पहुचा रही है,
गहराई प्रेम की सिखा रही है
ये वसुधा एक परिवार है ,ये बात रही है,
दुःख हर सुख बँटाने का भाव बता रही है
धरा को सवारों, ये समझा रही है
मझदार से मानवता बचाओ,कुछ यूं बात रही है
प्रेम की गहराई सिखा रही है,
आईना कुछ नया दिखा रही है
एक नई राह पर चलना सिखा रही है,
कराहती मानवता आज मुझे बुला रही है
नई वसुधा का निर्माण सिखा रही है।