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चेतना प्रकाश चितेरी , प्रयागराज

Tragedy

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चेतना प्रकाश चितेरी , प्रयागराज

Tragedy

कैसी है मेरी मज़बूरी

कैसी है मेरी मज़बूरी

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हम अपनों से दूर हुए, 

कैसी है मेरी मजबूरी।


हम अपनों से दूर हुए 

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 

जिस माँ ने जनम दिया 

वह माँ आज है अकेली |


उसके प्यार के लिए

 हम भाई 

आपस में लड़ जाते थे , 


हम दोनों को झगड़ते देख

मांँ कहती -

तुम दोनों मेरे राम लखन हो


संस्कार दिया है हमने

श्रवण कुमार बनकर 

माता - पिता की सेवा करना , 


हम अपनों से दूर हुए 

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 


पिता देखें मेरे आने की राह

कोई पूछे मेरे बारे में, 

हंँसकर कह देते -

परिवार में है ख़ुशहाल


मुझे अब क्या चाहिए ? 

मेरे बच्चे सब खुश रहें

हमसे दूर होकर भी देते हैं दुआ


हम अपनों से दूर हुए

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 


कहांँ गई मेरे घर की रौनक़ ? 

चंद रुपयों के लिए

मैं सिमट कर रह गया 


हम अपनों से दूर हुए

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 


थका हुआ - सा जब घर आता

मंदिर में भगवान को न पाता हूँ

उदास मैं हो जाता 


काश ! मुझे भी ! कोई समझ लेता

मैं क्या चाहता हूंँ ? 

छोड़ के मैं न आता ,साथ उन्हें भी लाता 


हम अपनों से दूर हुए 

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 


सोचता हूँ कभी - कभी

पति , पिता , दामाद

बनकर मै रह गया , 


सबसे से नाता तोड़

कैसा रिश्ता जोड़ लिया ? 

सबके रहते हुए भी , 

मैं अकेला रह गया


हम अपनों से दूर हुए

कैसी है मेरी मज़बूरी ? 



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