कैसी चाल है
कैसी चाल है
यह समय की कैसी चाल है,
ना बृंद दिखते हैं,ना लताएं दिखती हैं
मंजिलों की होड़ है, रास्तों का जाल है
यह समय की कैसी चाल है
प्रकृति रंग बिहीन हो रही है,
पूर्णत: अपना अस्तित्व खो रही है
वैसे तो हर किसी को मलाल है
यह समय की कैसी चाल है
ना ठंडी हवाओं के झोंके हैं,
ना खलियानों के झरोखे हैं
रंग में कोई कहां रंगता है…
हर जगह तो गुलाल है
यह समय की कैसी चाल है
न जाने कहां गायब हो गई,
बरसात की सोंधी खुशबू
क्योंकि मंजिलों की होड़ है,
रास्तों का जाल है
यह समय की कैसी चाल है।
