कैसे समेटू यादों को
कैसे समेटू यादों को
तुम्हारी यादों को कितना समेटू,
कितना रोऊं, तुम रोज ना ऐसे
मन के गांव को निचोड़ा करो,
कि मैं पहले से ज्यादा व्याकुलता
से भर जाऊँ..!
तुम्हारी यादों को कितना समेटू,
कितना रोऊं, तुम रोज ना ऐसे
मन के गांव को निचोड़ा करो,
कि मैं पहले से ज्यादा व्याकुलता
से भर जाऊँ..!